अल्लामा इकबाल

निगाह बुलंद सुख़न दिल-नवाज जाँ पुर-सोज़
यही है रख्त-ए-सफर मीर-ए-कारवाँ के लिए
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अमल से जिंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
ये खाकी अपनी फितरत में न नूरी है न नारी है
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खुदी को कर बुलंद इतना की हर तक़दीर से पहले
खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है
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सितारों से आगे जहाँ और भी है
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी है

तू शाही है परवाज है काम तेरा
तेरे सामने आसमाँ और भी है
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