उपमा तव वदनाला त्याची मी ही दिली असती सुखे थोडेही जर त्याला येते लाजता तुज सारखे --- जातो तिथे उपदेश आम्हा सांगतो कुणीतरी किर्तने सारीकडे ..सारीकडे ज्ञानेश्वरी काळ्जी आमच्या हिताची एवढी घेवू नका जावू सुखे नरकात तेथे तरी येवू नका. --- भास्करा आम्हा दयाही येते तुझी अधिमधी पाहिली आहेस का रे रात्र प्रणयाची कधी? आम्हासही या शायराची मग कीव येऊ लागते याच्या म्हणे प्रणयास याला रात्र यावी लागते!! --- दोस्तहो दुनियेस धोका मेलो तरी आम्ही दिला येऊनही नरकात पत्ता कैलासचा आम्ही दिला हाय हे वास्तव्य माझे सर्वास कळले शेवटी सारेच हे सन्मित्र माझे येथेच आले शेवटी
हुस्न-ए-जाना की तारीफ मुमकिन नहीं आफरीन आफरीन आफरीन आफरीन तू भी देखे अगर तो कहे हमनशीं ऐसा देखा नहीं खूबसूरत कोई जिस्म जैसे अजंता की मूरत कोई जिस्म जैसे निगाहों पे जादू कोई जिस्म नगमा कोई जिस्म खुशबू कोई जिस्म जैसे मचलती हुई रागिनि जिस्म जैसे महकती हुई चाँदनी जिस्म जैसे की खिलता हुआ एक चमन जिस्म जैसे की सूरज की पहली किरन जिस्म तरशा हुआ दिलकश-ओ-दिलनशीं संदली संदली मरमरी मरमरी चेहरा एक फूल की तरह शादाब है चेहरा उसका है या कोई माहताब है चेहरा जैसे गझल चेहरा जान-ए-गझल चेहरा जैसे कली चेहरा जैसे कंवल चेहरा जैसे तसव्वुर भी तस्वीर भी चेहरा एक ख्वाब भी चेहरा ताबीर भी चेहरा कोई अलिफ़-लैलवी दास्तान चेहरा एक पल यक़ीन चेहरा एक पल गुमान चेहरा जैसे की चेहरा कही भी नहीं माहरू माहरू महजबीन महजबीन आँखें देखी तो मैं देखता रह गया जाम दोनों और दोनों ही दो आतिशा ऑंखें या मयक़दे के दो बाब है आँखें इनको कहूँ या कहूँ ख्वाब है ऑंखें नीची हुई तो हया बन गयी आँखें ऊँची हुई तो दुआ बन गयी आँखें उठ कर झुकी तो अदा बन गयी आँखें झुक कर उठी तो कदा बन गयी ऑंखें जिन में है कैद आसमान-ओ-जमीन ...
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे बोल ज़बाँ अब तक तेरी है तेरा सुत्वाँ जिस्म है तेरा बोल कि जाँ अब तक तेरी है देख कि आहन-गर की दुकाँ में तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन खुलने लगे क़ुफ़्लों ...
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